Anjum Chopra Women’s Day Special: क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि जुनून भी है। इस जुनून में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी अपनी जगह बनाई है। वर्तमान समय में महिला क्रिकेट भी उतना ही लोकप्रिय हो रहा है जितना की पुरुष क्रिकेट ने अपनी लोकप्रियता बनाई है। वीमेंस क्रिकेट वर्ल्ड कप, वीमेंस प्रीमियर लीग, द हंड्रेड और बिग बैश लीग जैसी लीग्स ने महिलाओं के लिए नए रास्ते खोल दिए हैं।
लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि, क्रिकेट में कुछ शब्द अब सुनाई नहीं देते हैं? अब मैन ऑफ द मैच की जगह प्लेयर ऑफ द मैच और बैट्समैन की जगह बैटर शब्द क्यों इस्तेमाल किया जाता है? इस बदलाव की वजह क्या है? आइए जानते हैं भारत की पूर्व महिला क्रिकेट कप्तान अंजुम चोपड़ा ने महिला दिवस के मौके पर इस बदलाव की क्या वजह बताई है।
अंजुम ने बताई संघर्ष की कहानी

अंजुम चोपड़ा का परिवार पूरी तरह से स्पोर्ट्स बैकग्राउंड से आता है। उनके नाना एथलीट, पिता गोल्फर, मां कार रैली चैंपियन और मामा क्रिकेटर थे। ऐसे में उनके लिए क्रिकेट खेलना आसान होना चाहिए था।
अंजुम ने कहा:
“स्पोर्ट्स में आना आसान था क्योंकि घर में सब इसे समझते थे, लेकिन क्रिकेट को करियर बनाना मुश्किल था। मुझे याद है कि जब मुझे नेशनल चैंपियनशिप खेलनी थी, तब मेरा एमबीए एंट्रेंस भी था। परिवार ने पहले पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी। तब गुस्सा तो आया, लेकिन मैंने पढ़ाई भी पूरी की और क्रिकेट भी नहीं छोड़ा।”
आज के समय में महिला क्रिकेट में क्या हुए बदलाव
अंजुम से जब पूछा गया कि उनके समय और आज के समय में क्या बदलाव आया है, तो उन्होंने कहा, “बहुत कुछ बदला है और ये बदलाव अच्छा है। हमने तो ग्राउंड पर घास तक काटी है, रोलर चलाया है, बजरी पर मैट बिछाकर प्रैक्टिस की है। हमारे पास सुविधाएं नहीं थीं, लेकिन हमने मेहनत करना नहीं छोड़ा। यही वजह है कि हम मजबूत बने रहे, फिर बात चाहे मैदान में हों या मैदान के बाहर।”
आज महिला क्रिकेट को पहले से ज्यादा पहचान मिल रही है। वीमेंस प्रीमियर लीग की शुरुआत के समय स्टेडियम में भीड़ कम थी, लेकिन अब दर्शकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे साफ है कि महिला क्रिकेट भी अब पुरुष क्रिकेट की बराबरी कर रहा है।
क्यों बदले क्रिकेट के शब्द?
अंजुम चोपड़ा से जब पूछा गया कि क्रिकेट को ‘जेंटलमेन गेम’ कहा जाता है, जबकि महिलाओं ने इसमें कई उपलब्धियां हासिल की हैं, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “अब बदलाव आ रहा है। पहले ‘मैन ऑफ द मैच’ कहा जाता था, अब ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ कहते हैं। पहले ‘बैट्समैन’ बोला जाता था, अब ‘बैटर’ कहते हैं। यही तो ‘विंड ऑफ चेंज’ है।”
उन्होंने 1995 की एक घटना शेयर करते हुए कहा:
जब मुझे इंडियन टीम का ब्लेजर मिला था, तब हम नेहरू स्टेडियम के डॉरमेट्री में रहते थे। मैं इतनी खुश थी कि ऊपर-नीचे दौड़ रही थी, लेकिन एक आईना तक नहीं था जहां खुद को ब्लेजर पहने देख सकती। तब सुविधाएं इतनी कम थीं, लेकिन अब चीजें बदल गई हैं।
युवा क्रिकेटर्स के लिए संदेश
अंजुम चोपड़ा का मानना है कि क्रिकेट सिर्फ एक टीम गेम नहीं, बल्कि व्यक्तिगत मेहनत और समर्पण का खेल भी है।
उन्होंने युवाओं को संदेश देते हुए कहा:
अगर आपको अपनी कमजोरी और ताकत समझ नहीं आ रही, तो अपने परिवार या मेंटॉर से जरूर बात करें। मेहनत करते रहें, खुद पर भरोसा रखें और कभी हार न मानें।
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