शायद आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि जब 19 साल की दिव्या देशमुख ने दुनिया की सबसे FIDE वीमेंस वर्ल्ड कप 2025 का खिताब जीतने वाली चाल चली, तो उस पल को देखने के लिए हॉल में कोई दर्शक मौजूद नहीं था। वहाँ ना तो तालियाँ बजीं, ना ही जश्न मना और न कैमरों की फ्लैश चमकी। बस एक शांत हॉल, एक गहरी साँस और चेसबोर्ड पर वो ऐतिहासिक मूव, जिसने दिव्या को वर्ल्ड चैंपिपन बना दिया।
अब सवाल यह उठता है कि जब दिव्या देशमुख को इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल हुई, तो वो खाली हॉल में क्यों हुई? क्या किसी ने उसे रोक दिया? क्या उस मैच को देखने के लिए लोग नहीं आए थे? या फिर ये सब योजना का हिस्सा था? इन सभी सवालों का जवाब आपको यहाँ पर मिलने वाला है।
FIDE के सख्त नियमों में छुपा है इसका जवाब
अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ (FIDE) के सुरक्षा प्रोटोकॉल के अनुसार, वर्ल्ड कप जैसे टॉप-लेवल टूर्नामेंट में टाई-ब्रेक के दौरान दर्शकों को केवल पहले 30 मिनट के लिए हॉल में रहने की अनुमति होती है। उसके बाद सभी को बाहर कर दिया जाता है, चाहे वे दर्शक हों, मीडिया कर्मी हों, खिलाड़ी के कोच हों या खुद टीम ऑफिशियल्स हों।
यह नियम इसीलिए बनाए गए हैं ताकि किसी तरह की गड़बड़ी, चीटिंग या मनोवैज्ञानिक दबाव से खिलाड़ी प्रभावित न हों। इसी के चलते जब दिव्या देशमुख ने 75वीं चाल चलकर भारत को जीत दिलाई, उस समय हॉल में सिर्फ कुछ FIDE अधिकारी और आर्बिटर्स मौजूद थे।
जब कैमरों से दूर खेली गई चेस की सबसे बड़ी बाज़ी
भारतीय टीम के प्रमुख प्रतिनिधि ग्रैंडमास्टर श्याम सुंदर मोहनराज ने खुद बताया कि वे भी उस ऐतिहासिक पल को अपनी आंखों से नहीं देख पाए। उन्हें भी नियमों के चलते हॉल से बाहर जाना पड़ा। बाद में उन्होंने YouTube पर जाकर देखा कि दिव्या ने किस अंदाज़ में हम्पी को हराया।
उन्होंने बताया कि दोनों क्लासिकल गेम्स और पहला रैपिड गेम ड्रॉ रहे। आखिरी टाई-ब्रेक में जब दिव्या ब्लैक पीस से खेल रही थीं, जो परंपरागत रूप से थोड़ा असुविधाजनक माना जाता है, तब उन्होंने जबरदस्त नियंत्रण और धैर्य दिखाया।
दिव्या ने कैसे जीता यह तनावभरा मुकाबला?
शुरुआत में कोनेरु हम्पी बेहतर स्थिति में थीं, लेकिन दिव्या ने एक भी चाल में जल्दबाज़ी नहीं चली। उन्होंने लगातार दबाव बनाया और हम्पी को थकाने की रणनीति अपनाई। अंत में जब हम्पी ने 69.h7 की चाल चली, जो उनकी सबसे बड़ी गलती थी, तब दिव्या ने बिना मौका गँवाए जीत की मुहर लगा दी।
75 चालों के बाद भारत की बेटी ने जो खिताब अपने नाम किया, वह सिर्फ एक जीत नहीं थी, बल्कि पूरे इंडियन वीमेंस चेस इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धि बन गई।
बिना किसी GM नॉर्म के बनीं भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर
सबसे दिलचस्प बात यह है कि दिव्या देशमुख इस टूर्नामेंट में बिना किसी ग्रैंडमास्टर नॉर्म के उतरी थीं। लेकिन सिर्फ 15–20 दिनों में उन्होंने न सिर्फ वर्ल्ड कप जीता, बल्कि भारत की 88वीं और चौथी महिला ग्रैंडमास्टर भी बन गईं।
श्याम सुंदर बताते हैं कि अब जब दिव्या GM बन चुकी हैं, तो वह ज्यादा कॉन्फिडेंस के साथ खेलेंगी, उन्हें और अच्छे टूर्नामेंट्स में खेलने का मौका मिलेगा और वह आने वाले समय में कई बड़ी उपलब्धियाँ हासिल करेंगी।
दिव्या को मिला सालों की मेहनत का फल
हालांकि, लोगों को दिव्या की यह जीत एक चौंकाने वाली सफलता लग सकती है, लेकिन यह किसी भी तरह से अचानक नहीं थी। पिछले कुछ सालों से उन्होंने लगातार कड़ी मेहनत की है, खासकर ओपनिंग प्रिपरेशन में।
श्याम सुंदर कहते हैं, “दिव्या की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह कभी हार नहीं मानतीं। चाहे पोजीशन खराब हो जाए, वह आखिरी तक लड़ती हैं। यही उनकी असली ताकत है।”
दिव्या के ऐतिहासिक मूव पर उस हॉल में तालियाँ
यह सच है कि दिव्या के ऐतिहासिक मूव पर उस हॉल में तालियाँ नहीं बजीं। लेकिन भारत ने वह पल मिस नहीं किया। न ही उसकी अहमियत कम हुई, न उस जीत का गौरव कम हुआ।
वह हॉल भले खाली था, लेकिन देश भर के दिल उस समय गर्व और उम्मीद से भर गए थे। दिव्या ने यह दिखा दिया कि एक सच्चा चैंपियन केवल भीड़ के सामने नहीं, बल्कि एकांत में भी इतिहास रच सकता है।
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