बीते कुछ सालों में चंद खिलाड़ी ऐसे देखे गए हैं, जो गरीब परिवार से आकर आज भारतीय क्रिकेट में अपना जलवा बिखेर रहे हैं। उदारहण के लिए ऋषभ पंत जिन्होंने दिल्ली के गुरुद्वारे में अपनी रातें गुजारते हुए क्रिकेटर बनने का सपना देखा और वो सच भी साबित हुआ। इसके अलावा रिंकू सिंह, यशस्वी जायसवाल और थंगरासू नजराजन जैसे कई प्रेरणादायक उदाहरण हमारे पास हैं। इसी कड़ी में एक और हौनहार क्रिकेटर ध्रुव जुरेल का भी नाम जुड़ चुका है। इस खिलाड़ी की कहानी भी बहुत दिलचस्प है।
क्रिकेट किट खरीदने के नहीं थे पैसे
ध्रुव जुरेल के पिता ने उनकी पूरी जिंदगी कंधे पर बंदूक टांगकर देश की रक्षा की है। उन्होंने कारगिल वार में पाकिस्तान को धूल चटाई है। इस खिलाड़ी के बारे में एक बात खूब की खूब चर्चा हो रही है। वो बात ये है कि जब ध्रुव के पास क्रिकेट की किट खरीदने तक के पैसे नहीं थे, ऐसे वक्त में उनकी मां ने अपने गहने बेच कर अपने बेटे को उसके सपने देखने की हिम्मत दी। अब परिणाम सबके सामने में है। तीसरे टेस्ट मैच में ध्रुव जुरेल ने भारतीय टीम में डेब्यू कर लिया है।
आगरा के रहने वाले हैं जुरेल
इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे टेस्ट मैच में ध्रुव जुरेल को केएस भरत की जगह टीम में शामिल किया गया है। हांलाकि आज ध्रुव जुरेल ने भारतीय टीम के लिए डेब्यू कर लिया है। लेकिन उनके पिता उन्हें एक क्रिकेटर नहीं बल्कि इंडियन आर्मी में एक बड़ा आफिसर देखना चाहते थे। परंतु ध्रुव जुरेल की किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इस वक्त ध्रुव जुरेल की उम्र मजह 23 वर्ष की है और वो आगरा के रहने वाले हैं। अब इस खिलाड़ी पर उनके परिवार समेत पूरे देश को उम्मीदें हैं।
कुछ ऐसे बने ध्रुव विकेटकीपर बल्लेबाज
ध्रुव जुरेल के पिता का नाम नेम सिंह हैं, जिन्होंने भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दी है और हवलदार के पद से रिटायर हुए हैं। इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे टेस्ट में ध्रुव ने केएस भरत को रिप्लेस कर इंटरनेशल क्रिकेट में डेब्यू किया। इस दौरान पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज दिनेश कार्तिक ने कैप पहनाई। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वह (ध्रुव के पिता) अपने बेटे की सफलता से काफी रोमांचित हैं। वो इसे एक सपने के सच होने जैसा मान रहे हैं। इसके अलावा ध्रुव का सपोर्ट करने वाले सभी लोगों का धन्यवाद भी अदा करना चाहते हैं। ध्रुव के पिता चाहते थे कि वो नेशनल डिफेंस अकेडमी (एनडीए) में जाए और आर्मी में शामिल होकर देश की सेवा करें। लेकिन ध्रुव के मन में कुछ और ही था। उनको क्रिकेट खेलने से प्यार और जुनून था। जिसका परिणाम आज जाकर मिला है। बता दें कि इससे पहले ध्रुव के परिवार में कोई भी क्रिकेट नहीं खेलता था। अच्छी बात ये रही कि उन्होंने अपनी प्रतिभा को पहले ही पहचान लिया था। जिसके बाद उनके पिता नेम सिंह ने ध्रुव की क्रिकेट कला को विकसित करने के लिए कोच परवेंद्र यावद को बताया। इसके बाद कोच परवेंद्र ने भी उनकी मदद की और ध्रुव को क्रिकेट की प्रैक्टिस कराई।
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