Sunday, July 6
आज के वक्त भारत के महान धावक मिल्खा सिंह इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उन्होंने अपने स्पोर्ट्स जीवन में कई ऐसे कारनामें किए जिसकी वजह से आज भी वो खेल प्रेमियों के मन में बसे हुए हैं। मिल्खा सिंह ने करीब एक दशक से भी ज्यादा समय तक इंडियन ट्रैंक एंड फील्ड पर राज किया। इस दौरान उन्होंने कई रिकॉर्ड्स बनाए और साथ ही कई पदक भी हासिल किए। चाहे मेलबर्न 1956 ओलंपिक हो या फिर रोम 1960 ओलंपिक या 1964 टोक्यो का ओलंपिक। उन्होंने हर जगह भारत का प्रतिविधत्व किया। ये ही कारण है कि मिल्खा सिंह को आज भी देश एक महानतम एथलीट के रूप में याद करता है।

 

सेना में शामिल होने के बाद पहचाना कौशल

साल 1929 में 20 नवंबर के दिन गोविंदपुरा (इस वक्त पाकिस्तान का हिस्सा) के सिख परिवार में जन्में मिल्का सिंहविभाजन के समय भाग कर भारत की राजधानी दिल्ली में आ गए थे। दिल्ली आने के बाद वो महज कम उम्र में ही भारतीय सेना में शामिल हो थे और ये ही वो वक्त था जब उन्हें ट्रैकिंग फील्ड का चस्का लगा। यहां पर उन्होंने अपनी दौड़ने की कला को विकसित किया। इस दौरान सबसे पहले मिल्खा सिंह ने क्रॉस कंट्री रेस में हिस्सा लिए और छठा स्थान भी प्राप्त किया। इस रेस में भारतीय सेना के करीब 400 धावक हिस्सा ले रहे थे। बाद में मिल्खा सिंह को आगे की ट्रेनिंग के लिए चुना गया। यही से इस महान रेसर के करियर की शरुआत हुई।
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‘द फ्लाइंग सिख’ के नाम से हुए मशहूर

उनका पहला ओलंपिक मेलबर्न 1956 का था, जहां बिना किसी अनुभव के मिल्खा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर रेस में हिस्सा लिया लेकिन कुछ खास नहीं कर पाए। लेकिन इस दौरान चैंपियन चार्ल्स जेनकिंस के साथ उनकी मुलाकात से उन्हें काफी प्रेरणा मिली। इसके बाद मिल्खा सिंह ने काफी मेहनत की। वो दिन रात अभ्यास करते हुए नजर आते थे। उनकी इस मेहनत ने उन्हें चलती हुई मशीन की तरह बना दिया। उनकी मेहनत का पहला परिणाम उन्हें साल 1958 में मिला, जब स्वतंत्र भारत में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन हुआ और यहां पर मिल्खा सिंह ने उनके जीवन का पहला गोल्ड मेडल जीता। साल 1960 के दौरान रोम में ओलंपिक का आयोजन हुआ। इस वक्त तक दुनिया मिल्खा सिंह को ‘द फ्लाइंग सिख’ के नाम से जानने लगी थी। अब वो वक्त था जब हर कोई उन्हें ओलंपिक के पोडियम तक पहुंचने के लिए दावेदार के रूप में देखने लगा था।

 

रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह ने बनाया ये खास रिकॉर्ड

मिल्खा सिंह ने अपने जीवन का पहला ओलंपिक साल 1956 में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न की धरती पर खेला था। इस वक्त तक उन्हें ट्रैकिंग फील्ड का खास अनुभव नहीं था। ये ही कारण था कि मेलबर्न ओलंपिक में मिल्खा सिंह कुछ खास नहीं कर पाए थे। 1960 का रोम ओलंपिक मिल्खा सिंह समेत सभी भारतीयों के लिए अहम साल रहा था। इस दौरान मिल्खा सिंह ने 400 मीटर के फाइनल में हिस्सा लिया और बेहद कम संसाधनों के बावजूद वो चौथे स्थान पर रहे। उन्होंने ये कारनामा 45.73 में किया। इस दौरान फ्लाइंग सिख मिल्का सिंह भले ही मेडल से चूक गए हो लेकिन उन्होंने ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसको करीब 40 साल तक कोई नहीं तोड़ा पाया।

 

मिल्खा सिंह का आखिरी ओलंपिक

इसके बाद साल 1964 का टोक्यो ओलंपिक मिल्खा सिंह का आखिरी ओलंपिक था। इस दौरान उन्होंने 4×400 मीटर रेस में भारत का प्रतिनिधित्व किया। मिल्खा सिंह के जीवन का आखिरी ओलंपिक काफी यादगार रहा। इस बारे में मिल्खा सिंह ने उनकी बेटी सोनिया सनवल्का की मदद से साल 2013 में प्रकाशित हुई अपनी आत्मकथा ‘द रेस ऑफ माई लाइफ’ में खुलकर बात की है। बता दें कि मिल्खा सिंह के उपर बायोपिक फिल्म भी बनी हुई है। इस बॉलीवुड फिल्म का नाम ‘भाग मिल्खा भाग’ है, जेसे राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने निर्देशित किया है।

कोरोना काल के वक्त मिल्खा सिंह भी इसकी चपेट में आ गए थे। जिसकी वजह से 18 जून 2021 को उनकी मृत्यु हो गई। मिल्खा सिंह ने कई बार इंटरव्यू के दौरान बताया था कि उनकी आखिरी इच्छा के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि उनके जीवन में एक बार वो किसी भारतीय द्वारा खुद का रिकॉर्ड टूटते हुए देखना चाहते हैं।

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साल 2020 से स्पोर्ट्स पत्रकारिता में एक सिपाही के तौर पर कार्यरत हूं। प्रत्येक खेल में उसके सभी पहलुओं के धागे खोलकर आपके सामने रखने की कोशिश करूंगा। विराट व रोहित का बल्ला धोखा दे सकता है, लेकिन आपको यहां खबरों की विश्वसनियता पर कभी धोखा नहीं मिलेगा। बचपन से ही क्रिकेट के साथ-साथ अन्य खेलों में खास दिलचस्पी होने के कारण इसके बारे में लिखना बेहद पसंद है।

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