इंग्लैंड क्रिकेट टीम के पास एक अजीब सी सोच है। उन्हें लगता है कि वो टेस्ट क्रिकेट के असली संरक्षक हैं। उन्हें लगता है कि वो ‘स्पिरिट ऑफ क्रिकेट’ के असली प्रतिनिधि हैं, लेकिन जब भी कोई टीम नियमों का इस्तेमाल करके उन्हें मात देती है, तब उन्हें लगता है कि अन्य टीमें खेल की आत्मा के खिलाफ जा रही हैं।
इसी सोच के साथ इंग्लैंड अब एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी के आखिरी टेस्ट में द ओवल में मैदान में उतरी है। इस बार उनके पास न तो बेन स्टोक्स हैं और न ही ज्यादा समर्थन, लेकिन शायद उन्हें यही चाहिए कि पूरी दुनिया उनके खिलाफ हो और वो खुद को ‘क्रिकेट के सुधारक’ मानें।
“हम अच्छे हैं, बाकी सब गलत”, इंग्लैंड क्रिकेट टीम की सोच
हाल के दिनों में जिस तरह से इंग्लैंड के खिलाड़ियों और सपोर्ट स्टाफ का व्यवहार सामने आया है, वह इस बात की पुष्टि करता है कि वो खुद को ‘अच्छे लोग’ मानते हैं। बेन स्टोक्स और ब्रेंडन मैकुलम की अगुवाई में इंग्लिश टीम ये मान बैठी है कि वो ही टेस्ट क्रिकेट में बदलाव लाने वाले हैं और जो कोई उनके रास्ते में आता है, वह पुराने ढर्रे से चिपका हुआ है।
जब भी उन्हें हार का सामना करना पड़ता है या कोई विरोधी टीम नियमों के दायरे में रहकर चालाकी दिखाती है, तो इंग्लैंड खुद को पीड़ित दिखाने में देर नहीं करता। 2023 के लॉर्ड्स टेस्ट की बात करें, तो जब जॉनी बेयरस्टो को एलेक्स कैरी ने रनआउट किया, तो इंग्लैंड ने इसे खेल की आत्मा पर हमला बता दिया।
मोरल विक्ट्री का जुनून
इंग्लैंड टीम की सोच का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि हारने के बाद भी वो कभी खुद को गलत नहीं मानते। उनके लिए मोरल विक्ट्री यानी नैतिक जीत ही असली जीत बन चुकी है। चाहे वो स्लो ओवर रेट की बात हो या वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में लगातार पिछड़ने की बात हो, वो गलती कभी अपनी नहीं मानते। उनके अनुसार, दोष हमेशा सिस्टम या परिस्थितियों का होता है।
इसी रवैये के चलते इंग्लिश टीम न केवल विरोधी टीमों की आलोचना करती है, बल्कि अंपायरिंग, नियमों और यहां तक कि पूरे टेस्ट चैंपियनशिप सिस्टम को भी नीचा दिखाने से नहीं हिचकती।
‘नाइस गाइज’ की ब्रांडिंग, लेकिन व्यवहार विपरीत
मजेदार बात यह है कि इस सीरीज की शुरुआत में मैकुलम ने अपनी टीम से कहा था कि उन्हें अब ‘नाइस गाइज’ नहीं दिखना है, बल्कि थोड़ा आक्रामक बनना होगा। लेकिन टीम का आक्रोश उस दिशा में गया, जहां उन्होंने विरोधियों की कामयाबी को नीचा दिखाना शुरू कर दिया।
रविंद्र जडेजा के शतक पर हैरी ब्रूक का रिएक्शन इसका उदाहरण था, जब उन्होंने बड़ी बेमन से हाथ बढ़ाया। उनके हावभाव में एक तरह की नाराजगी थी, मानो वो कह रहे हों, “हम अच्छे हैं, हमें इतना सजा क्यों दी जा रही है?”
ऑस्ट्रेलिया में इंग्लैंड की किरकिरी
ऑस्ट्रेलिया में इंग्लैंड के इस रवैये को सबसे ज्यादा आलोचना मिली है। खासकर, जब यह एशेज सीजन शुरू होने वाला है और ऑस्ट्रेलिया भी इंग्लैंड की हर हरकत पर पैनी नजर रख रहा है। लॉर्ड्स में मिली जीत के बाद ऑस्ट्रेलियाई विश्लेषकों ने इंग्लैंड को कुछ हद तक सराहना दी थी, क्योंकि उन्होंने बैजबॉल के बजाय मैच की परिस्थितियों के मुताबिक खेला था।
लेकिन जैसे ही इंग्लैंड ने फिर से ‘हम अच्छे हैं’ की तर्ज पर विवाद खड़ा किया, ऑस्ट्रेलियाई मीडिया और फैंस का नजरिया फिर बदल गया। अब इंग्लैंड को फिर से ‘नाटकबाजों’ की नजर से देखा जा रहा है, जो जीत से ज्यादा ध्यान इस बात पर देते हैं कि उन्हें क्यों सही माना जाना चाहिए।
भारत के खिलाफ सीरीज का अंत और समर्थन की कमी
ओवल में होने वाले आखिरी टेस्ट में इंग्लैंड को न सिर्फ भारत की युवा टीम का, बल्कि उस वैश्विक धारणा का भी सामना करना है, जिसमें अब शायद ही कोई उन्हें ‘क्रिकेट का मसीहा’ मानता है। सोशल मीडिया से लेकर विश्लेषकों तक, ज्यादातर लोग अब शुभमन गिल की कप्तानी वाली भारतीय टीम का समर्थन कर रहे हैं।
इस समय इंग्लैंड की छवि बहुत हद तक वैसी बन चुकी है, जैसी पहले दुनिया भारत के बारे में बनाती थी। अब लोग मानते हैं कि इंग्लैंड एक अहंकारी टीम है, जो अपने ही नैरेटिव में उलझी रहती है और हार को भी ‘मोरल विक्टरी’ में बदल देती है।
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