भारत देश के पास पहले से ही प्रतिभावान और मेहनती लोगों की कमी नहीं थी। भारतीय पुरुषों ने तो अपने हुनर से देश का कई बार नाम रोशन किया ही लेकिन महिलाएं भी इस मामले में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। बात चाहें घर के काम की हो या फिर एथलेटिक्स की, महिलाएं हर जगह बराबरी पर नजर आती हैं। इसी कड़ी में आज हम उत्तराखंड की एक ऐली महिला की बात कर रहें हैं, जिन्होंने करीब 40 साल पहले माउंट एवरेस्ट फतह कर देश की पहली पर्वतारोही महिला होने का गौरव हासिल किया।
बछेंद्री पाल ने चर दिया था इतिहास
जी हां, दरअसल हम बछेंद्री पाल की बात कर रहे हैं। ये वहीं महिला हैं जिन्होंने दुनिया के सबसे उंचे पहाड़ माउंट एवरेस्ट पहुंचकर ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला होने का गौरव हासिल किया था। बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी में हुआ था। BBC की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बछेंद्री पाल ने कभी भी इस प्रकार के कार्य को अंजाम देने के बारे में सपने में भी नहीं सोचा था, लेकिन उनके जीवन में एक बार उनकी मुलाकात एक पर्वतारोही से हुई और इसके बाद उनके जिंदगी में सबकुछ बदल गया। पाल ने इसके पर्वतारोहण कोर्स के लिए आवेदन किया और माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली हिंदुस्तान की पहली मिश्रित-लिंग टीम का हिस्सा बन गई।
मौत को करीब देख नहीं टूटा बछेंद्री पाल का हौसला
इसके अलावा बीबीसी द्वारा जारी किए गए इंटरव्यू में इस बात का खुलासा हुआ कि माउंट एवरेस्ट जैसे दुनिया के सबसे उंचे पहाड़ की यात्रा खतरों से भरी हुई थी। उस वक्त हिमस्खलन ने शिविर को नष्ट कर दिया था। जिस टीम में बछेंद्री पाल थी उस टीम के कई सदस्य घायल भी हो गए थे। इसके अलावा बछेंद्री पाल को भी इस हिमस्खलन ने लगभग कुचल के ही रख दिया था। लेकिन ऐसे वक्त में भी उनका हौसला नहीं टूटा था। बछेंद्री पाल लगातार ही दुनिया की सबसे उंची चोटी पर चढ़ती रही।

जन्मदिन के दिन बछेंद्री ने भारत को दिया ये अनोखा तोहफा
वैसे तो बछेंद्री पाल हर साल 24 मई को अपना जन्मदिन मनाती हैं, लेकिन साल 1984 के 23 मई यानी उनके जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले उन्होंने इतिहास रच दिया और इस दिन को भारत के इतिहास के सबसे अच्छे दिनों में से एक बना दिया। जी हां, 23 मई 1984, ये वो ही दिन था, जब बछेंद्री पाल ने दुनिया की सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह किया था। इस दौरान उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ कर बड़ी ही शान से भारत का झंडा फहराया था। इस वक्त वो ऐसा करने वाली भारत की एकलौती प्रथम महिला बनी थीं।
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