Shikhar Dhawan Opens Up on Separation From Son Zoravar: पूर्व भारतीय क्रिकेटर शिखर धवन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में अपनी निजी जिंदगी के उस पहलू को साझा किया, जिसे लेकर वे अब तक चुप रहे थे। उन्होंने बताया कि वे पिछले दो वर्षों से अपने बेटे जोरावर से नहीं मिले हैं और एक साल से उनसे बात भी नहीं हुई है। इसके बावजूद वे लगातार संपर्क साधने की कोशिश करते हैं।
धवन ने ANI को दिए गए इंटरव्यू में कहा, “मैं चाहता हूं कि मेरा बेटा खुश और स्वस्थ रहे। मैं हर तीन या चार दिन में उसे मैसेज करता हूं, भले ही मैं ब्लॉक हूं। मुझे फर्क नहीं पड़ता कि वह उन्हें पढ़े या नहीं। यह मेरा कर्तव्य है कि मैं कोशिश करता रहूं और मैं करता रहूंगा।”
आध्यात्म के सहारे जुड़ाव बनाए रखने की कोशिश
शिखर धवन ने बताया कि वे अपने 11 वर्षीय बेटे से आध्यात्मिक रूप से जुड़े रहते हैं। उन्होंने कहा, “अब तक मैंने उसे सिर्फ ढाई साल ही देखा है। लेकिन मैं रोज ध्यान करता हूं, उसमें उसे देखता हूं, महसूस करता हूं कि मैं उससे बात कर रहा हूं, उसे गले लगा रहा हूं। यह मेरी ऊर्जा का तरीका है जिससे मैं उससे जुड़ाव बनाए रखता हूं।”
उन्होंने आगे कहा कि ध्यान और विज़ुअलाइजेशन (कल्पना) के माध्यम से वे उस भावनात्मक जुड़ाव को महसूस करते हैं, जो शारीरिक रूप से संभव नहीं हो पा रहा।
तलाक के बाद पिता-पुत्र का संबंध बना रहा मुद्दा
शिखर धवन और उनकी पूर्व पत्नी आयशा मुखर्जी के बीच तलाक के बाद से बेटे जोरावर की कस्टडी को लेकर विवाद चला आ रहा है। धवन की बातों से साफ है कि वे अब भी एक पिता के तौर पर अपनी भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं, भले ही परिस्थितियां उनके अनुकूल न हों।
उनकी यह कहानी उन हजारों माता-पिता की भावनाओं को आवाज देती है, जो तलाक या कानूनी विवाद के चलते अपने बच्चों से दूर हो जाते हैं।
क्या कहती हैं विशेषज्ञ?
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट अंजलि गुर्सहनी के मुताबिक, “जब कोई बच्चा अपने माता-पिता से लंबे समय तक अलग रहता है, खासकर बिना स्पष्ट वजह के, तो यह उसके आत्म-सम्मान और भावनात्मक विकास को प्रभावित कर सकता है। बच्चे खुद को अस्वीकार किए जाने की भावना से जूझ सकते हैं, जिससे तनाव, चिंता और डिप्रेशन जैसी समस्याएं जन्म ले सकती हैं।”
उनका कहना है कि अगर अलगाव के बावजूद बच्चे को यह यकीन दिलाया जाए कि उसे प्यार किया जा रहा है, तो इस मानसिक दबाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
ध्यान, मेडिटेशन और आध्यात्म का क्या है प्रभाव?
गुर्सहनी बताती हैं कि ध्यान, विज़ुअलाइजेशन और ऊर्जा आधारित आध्यात्मिक अभ्यास भावनात्मक जुड़ाव को महसूस कराने में काफी मददगार हो सकते हैं। इससे व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है और वह खुद को कम अकेला महसूस करता है।
उन्होंने कहा, “कॉग्निटिव बिहेवियरल थैरेपी (CBT) जैसे साइकोलॉजिकल टूल्स भी काफी असरदार हैं। साथ ही, योग, ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ और ट्रॉमा-इनफॉर्म्ड बॉडी मूवमेंट जैसी तकनीकें भी मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं।”
खुद को व्यस्त रखना भी है एक उपाय
विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर अलगाव से जूझ रहा व्यक्ति किसी सामाजिक कार्य में जुड़ जाए, जैसे किसी NGO से जुड़ना या बच्चों के लिए काम करना, तो इससे उसे उद्देश्य की भावना मिलती है और मानसिक राहत भी मिलती है।
शिखर धवन की यह कहानी सिर्फ एक पूर्व क्रिकेटर की नहीं, बल्कि एक पिता की भी है, जो अपने बेटे के साथ टूटी डोर को जोड़ने के लिए आध्यात्म और धैर्य का सहारा ले रहा है।