Pros and Cons of Returning to a Single-City Format in PKL 2025: कबड्डी प्रेमियों के लिए प्रो कबड्डी लीग (PKL) सिर्फ एक टूर्नामेंट नहीं, बल्कि एक त्योहार बन चुका है। हर साल जब लीग शुरू होती है, तो देश के अलग-अलग शहरों में फैंस अपने-अपने पसंदीदा खिलाड़ियों को चीयर करने के लिए स्टेडियम में उमड़ पड़ते हैं। चाहे वो जयपुर पिंक पैंथर्स के गुलाबी रंग हों या पटना पाइरेट्स के हरे झंडे, हर शहर में कबड्डी का जुनून कुछ अलग ही नज़र आता है।
लेकिन अब इस जुनून में थोड़ा बदलाव आ सकता है। खबरों के मुताबिक, PKL सीजन 12 एक बार फिर अपने पुराने फॉर्मेट की ओर लौटने की तैयारी में है, जिसमें पूरा टूर्नामेंट सिर्फ एक ही शहर में आयोजित किया जाएगा। इस बदलाव का मकसद लीग को ज्यादा व्यावसायिक और मैनेजमेंट फ्रेंडली बनाना है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे खेल की आत्मा और फैंस का जोश कहीं पीछे तो नहीं छूट जाएगा? आइए जानते हैं इस बदलाव के फायदे और नुकसान।
फायदे
कम खर्च, ज्यादा कंट्रोल
जब टीमें एक ही शहर में रुकती हैं और मैच भी वहीं होते हैं, तो ट्रैवल, होटल और वेन्यू सेटअप पर होने वाला खर्च काफी कम हो जाता है। इससे लीग का बजट कंट्रोल में रहता है और आयोजकों को सब कुछ बेहतर तरीके से मैनेज करने में आसानी होती है।
खिलाड़ियों को मिलेगी राहत
हर दूसरे या तीसरे दिन सफर करना किसी भी खिलाड़ी के लिए थकाने वाला होता है। लगातार एक जगह रहने से न सिर्फ उनकी फिजिकल कंडीशन बेहतर रहती है, बल्कि वे मैचों पर भी पूरी तरह फोकस कर पाते हैं।
तेजी से खत्म होगा टूर्नामेंट
करीब डेढ़ महीने में पूरा सीजन निपट जाएगा, जिससे न सिर्फ दर्शकों की दिलचस्पी बनी रहेगी, बल्कि ब्रॉडकास्टर्स और स्पॉन्सर्स को भी ज्यादा प्रभावशाली कवरेज देने का मौका मिलेगा।
एक जैसा माहौल, बेहतर खेल
हर मैच एक ही वेन्यू पर होने से खिलाड़ियों को वहां की मैट, लाइटिंग और माहौल की आदत हो जाती है। इससे खेल ज्यादा संतुलित होता है और टीमें रणनीति पर ज्यादा ध्यान दे पाती हैं।
ब्रॉडकास्टिंग और प्लानिंग में आसानी
लाइव कवरेज देने वाली टीम के लिए एक ही लोकेशन पर काम करना आसान होता है। कैमरा एंगल से लेकर कमेंट्री तक सब कुछ ज्यादा प्रोफेशनल और स्थिर हो सकता है। वहीं, टीमों के लिए भी रेस्ट और ट्रेनिंग का शेड्यूल प्लान करना आसान हो जाता है।
नुकसान
फैंस से दूर हो सकती है लीग
जब पीकेएल देश के अलग-अलग शहरों में होता था, तो वहां के फैंस को अपनी टीम को लाइव देखने का मौका मिलता था। इससे ना सिर्फ लीग की लोकप्रियता बढ़ती थी, बल्कि शहर-शहर कबड्डी का क्रेज भी फैलता था। सिंगल-सिटी फॉर्मेट से यह जुड़ाव कमजोर हो सकता है।
स्पॉन्सर्स का दायरा हो सकता है सीमित
हर शहर में होने वाले मैचों से लोकल ब्रांड्स को स्पॉन्सरशिप का मौका मिलता था। अब जब सब कुछ एक ही जगह होगा, तो छोटे शहरों के ब्रांड्स शायद खुद को इससे दूर रखें। इससे फ्रेंचाइज़ी और लीग की कमाई पर असर पड़ सकता है।
खिलाड़ियों को कम मौके मिलेंगे
भारतीय कबड्डी खिलाड़ियों के लिए पीकेएल ही सबसे बड़ा मंच है, क्योंकि देश में बाकी समय ज्यादा टूर्नामेंट्स नहीं होते। अगर सीजन छोटा हो गया, तो नए और बेंच पर बैठे खिलाड़ियों को खेलने के मौके भी कम मिलेंगे, जो उनके करियर के लिए चिंता की बात है।
क्या यह बदलाव सही दिशा में है?
सिंगल-सिटी फॉर्मेट अपने साथ कई सुविधाएं और फायदे लेकर आता है, लेकिन यह फैसला कबड्डी के भविष्य पर भी असर डाल सकता है। खासकर तब जब खेल को देश के कोने-कोने तक ले जाने की बात होती है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या लीग सिर्फ बेहतर प्रबंधन और कम खर्च के लिए अपने फैंस और खिलाड़ियों की कीमत पर यह फैसला लेती है या फिर कोई बीच का रास्ता खोजती है।
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