Womens Day Special Mary Kom Struggle to World Champion: अगर जिद हो, जुनून हो और खुद पर भरोसा हो, तो कोई भी सपना हकीकत में बदला जा सकता है। भारत की बेटियों ने खेल के मैदान में बार-बार यह साबित किया है कि वे किसी से कम नहीं। ऐसी ही एक कहानी है मैरी कॉम की, जो एक छोटे से गांव से निकलकर 6 बार की वर्ल्ड चैंपियन बनीं और भारत की पहली महिला बॉक्सर बनीं, जिन्होंने ओलंपिक पदक जीता।
इंटरनेशनल वीमेंस डे पर हम आपको बताने जा रहे हैं भारत की एक ऐसी ही महिला एथलीट के बारे में जिन्होंने अपने मेहनत और जुनून के दम पर नई युवा महिला खिलाड़ियों के लिए मिसाल कायम किया है।
कौन हैं मैरी कॉम?

मैरी कॉम का जन्म मणिपुर के एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। बचपन में उनके पास सुविधाएं तो कम थीं, लेकिन उनका हौसला और मेहनत बेमिसाल थी। 1998 में जब मणिपुर के बॉक्सर डिंको सिंह ने एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता, तो मैरी कॉम को भी बॉक्सिंग में अपना भविष्य नजर आया। उन्होंने 15 साल की उम्र में बॉक्सिंग की ट्रेनिंग शुरू की और अपने सपनों को साकार करने के लिए इम्फाल स्पोर्ट्स अकादमी में दाखिला लिया।
शुरुआती दिनों में उन्होंने अपने पिता से बॉक्सिंग की ट्रेनिंग छुपाकर रखी, क्योंकि उनके पिता को यह खेल खतरनाक लगता था। लेकिन जब 2000 में मैरी कॉम ने मणिपुर राज्य चैंपियनशिप जीत ली, तो उनके पिता को उनके टैलेंट का एहसास हुआ और उन्होंने बेटी का समर्थन किया।
मैरी कॉम की उपलब्धियां और अवार्ड्स पर एक नजर

मैरी कॉम ने 2001 में पहली बार वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता और अगले ही साल 2002 में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। इसके बाद उन्होंने 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018 में भी वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीते।
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 2012 में आई, जब उन्होंने लंदन ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत की पहली महिला बॉक्सर बनने का गौरव हासिल किया, जिसने ओलंपिक पदक जीता हो।
मैरी कॉम ने 2014 में एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता, 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीता और AIBA महिला विश्व चैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक हासिल किया। उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, राजीव गांधी खेल रत्न, पद्म श्री, पद्म भूषण और 2020 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
युवा खिलाड़ियों के लिए हैं प्रेरणा की स्त्रोत

मैरी कॉम की संघर्ष भरा जीवन हमें सिखाती है कि सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है, लेकिन मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। उन्होंने हर मुश्किल का सामना किया और सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि भारत की लाखों बेटियों के लिए एक नई राह बनाई। इंटरनेशनल वीमेंस डे पर उनकी कहानी हर उस लड़की के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलना चाहती है।
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