Parvez Rasool: पहलगाम और इसके आसपास के इलाकों में इन दिनों आतंकवाद की चपेट से कोहराम मचा है। लेकिन कुछ वक्त पहले तक इस वादी से एक ऐसा सितारा निकला था, जिसने न सिर्फ अपनी जमीन का नाम रोशन किया, बल्कि कश्मीर को भारतीय क्रिकेट में एक नई पहचान दी। यह नाम है परवेज रसूल।
बिजबेहाड़ा से उठी थी उम्मीद की पहली लहर

पहलगाम से लगभग 41 किलोमीटर दूर बिजबेहाड़ा कस्बे में जन्मे परवेज रसूल ने अपनी मेहनत से वह मुकाम हासिल किया, जो कश्मीर के युवाओं के लिए कभी एक सपना था। 2012-13 रणजी ट्रॉफी सीजन में उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए जम्मू-कश्मीर के लिए सबसे ज्यादा रन और विकेट अपने नाम किए। इसी प्रदर्शन ने परवेज को राष्ट्रीय पहचान दिलाई।
टीम इंडिया का पहला कश्मीरी चेहरा
परवेज रसूल ने 2014 में बांग्लादेश के खिलाफ मीरपुर वनडे में भारत के लिए डेब्यू किया। अपने पहले ही मैच में उन्होंने 2 विकेट झटके। तीन साल बाद, 2017 में इंग्लैंड के खिलाफ कानपुर में उन्होंने टी20 इंटरनेशनल में भी पदार्पण किया। हालांकि, टीम इंडिया में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा के कारण उन्हें लंबे समय तक मौका नहीं मिल सका।
आईपीएल में भी बनाए थे खास मुकाम
परवेज रसूल ने इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में सहारा पुणे वॉरियर्स, सनराइजर्स हैदराबाद और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु जैसी टीमों का हिस्सा बनकर खेला। विराट कोहली, क्रिस गेल और डेविड वॉर्नर जैसे सितारों के साथ ड्रेसिंग रूम साझा करने का मौका उन्हें मिला। 11 मैचों में 4 विकेट उनके नाम रहे। हालांकि, 2016 में उनका आखिरी आईपीएल सीजन रहा।
दो साल से घरेलू क्रिकेट से भी दूर
2017 में आखिरी अंतरराष्ट्रीय मुकाबला खेलने के बाद परवेज ने घरेलू क्रिकेट में जम्मू-कश्मीर टीम की कप्तानी संभाली। लेकिन 2023 के रणजी ट्रॉफी सीजन के बाद वह घरेलू सर्किट से भी दूर हो गए। पिछले दो वर्षों में वह भारत से बाहर बांग्लादेश के ढाका प्रीमियर लीग और श्रीलंका के क्लब क्रिकेट टूर्नामेंट्स में खेलते नजर आए हैं।
बिजबेहाड़ा में लोकल क्रिकेट से अब भी जुड़ाव
चाहे बड़े मंचों से दूरी बन गई हो, पर क्रिकेट से परवेज का रिश्ता अब भी कायम है। वह अपने गृहनगर बिजबेहाड़ा में लोकल क्लब क्रिकेट बिजबेहाड़ा स्पोर्ट्स क्लब के साथ जुड़े हुए हैं और यंग टैलेंट को तराशने में योगदान दे रहे हैं।
कश्मीर क्रिकेट के लिए एक प्रेरणा
परवेज रसूल का सफर दिखाता है कि हालात चाहे जैसे भी हों, जुनून और मेहनत रास्ता बना ही लेते हैं। भले ही वह आज टीम इंडिया की जर्सी में नजर न आते हों, लेकिन कश्मीर की गलियों में उनके संघर्ष और सफलता की कहानियां आज भी नए सपनों को जन्म देती हैं।
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