Cricket Controversy: क्या कभी एक जूते ने किसी खिलाड़ी का करियर रोक दिया है? क्रिकेट की दुनिया में कुछ ऐसे अनोखे और चौंकाने वाले किस्से हैं जहां खिलाड़ियों को उनके जूतों के कारण मैदान से बाहर होना पड़ा। इस लिस्ट में दो ऑस्ट्रेलियाई और एक इंग्लिश खिलाड़ी शामिल हैं। आइए जानते हैं उन तीन क्रिकेटर्स की कहानी जिनके लिए ‘जूता’ बन गया मुसीबत की जड़।
जॉन बेनो को गलत जूते पहनने पर झेलना पड़ा बैन

ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर जॉन बेनो, जो दिग्गज रिची बेनो के छोटे भाई हैं, अपने करियर में एक बेहद हैरान करने वाली वजह से बैन झेल चुके हैं। जॉन ने एक मुकाबले के दौरान ग़लत फुटवियर पहनकर मैदान में उतरने की गलती कर दी थी, जो उस समय के ड्रेस कोड के खिलाफ था। इस नियम उल्लंघन के चलते उन्हें दो मैचों का प्रतिबंध झेलना पड़ा। बाद में वह ऑस्ट्रेलिया के चयनकर्ता भी बने, लेकिन ये वाकया उनके करियर का सबसे विवादित पल बन गया।
उस्मान ख्वाजा को स्लोगन वाले जूते ने कर दिया बाहर
दिसंबर 2023 में ऑस्ट्रेलिया के सलामी बल्लेबाज उस्मान ख्वाजा भी जूतों की वजह से बैन के शिकार हुए। पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच में ख्वाजा अपने जूते पर दो स्लोगन लिखवाकर मैदान पर उतरे थे, उन्होंने लिखा था All Lives Are Equal, Freedom Is A Human Right आईसीसी ने इन स्लोगनों को राजनीतिक बयान मानते हुए ख्वाजा को मैदान में उतरने से रोक दिया। ख्वाजा ने बताया कि ये स्लोगन उन्होंने गाजा के समर्थन में लिखे थे। बता दें कि, अब तक ख्वाजा ऑस्ट्रेलिया के लिए 80 टेस्ट, 40 वनडे, और 9 टी20 मुकाबले खेल चुके हैं।
मोईन अली ‘Save Gaza’ लिखकर फंसे विवाद में

ख्वाजा से पहले इंग्लैंड के ऑलराउंडर मोईन अली भी जूतों पर लिखे स्लोगन की वजह से बैन झेल चुके हैं। 2014 में भारत के खिलाफ टेस्ट मैच के दौरान मोईन अपने जूतों पर ‘Save Gaza’ और ‘Free Palestine’ जैसे राजनीतिक स्लोगन लिखवाकर आए थे। आईसीसी ने इसे नियमों का उल्लंघन मानते हुए उन्हें खेलने से रोक दिया। मोईन इंग्लैंड के लिए अब तक 68 टेस्ट, 138 वनडे, और 92 टी20 इंटरनेशनल खेल चुके हैं।
जब जूता बना करियर की रुकावट
क्रिकेट में ड्रेस कोड और एथिक्स का पालन उतना ही जरूरी है, जितना रन बनाना। इन तीनों खिलाड़ियों का उदाहरण इस बात का सबूत है कि चाहे प्रदर्शन कितना भी दमदार हो, अगर खिलाड़ी नियमों से टकरा जाए, तो जूता भी उनका करियर रोक सकता है। इन घटनाओं ने यह भी दिखाया कि खेल सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं है, बल्कि उसकी छवि अंतरराष्ट्रीय सियासत और समाज के नजरिए से भी जुड़ी होती है।
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