Sarpreet Singh Set To Make FIFA World Cup History As First Indian-origin Player Since 2006: 26 वर्षीय मिडफील्डर सरप्रीत सिंह फीफा वर्ल्ड कप 2026 में इतिहास रचने की दहलीज पर हैं। न्यूज़ीलैंड की टीम ने ओशियाना ज़ोन क्वालीफायर के फाइनल में न्यू कैलेडोनिया को 3-0 से हराकर वर्ल्ड कप के लिए क्वालिफ़ाई किया। यह मुकाबला 24 मार्च को ऑकलैंड के ईडन पार्क में खेला गया।
इस जीत के साथ ही सरप्रीत सिंह उस टीम का हिस्सा बन गए है जो वर्ल्ड कप 2026 में हिस्सा लेगी। अगर वह फाइनल टीम का हिस्सा बनते हैं तो वह 2006 के बाद फीफा वर्ल्ड कप खेलने वाले पहले भारतीय मूल के खिलाड़ी बन जाएंगे।
बचपन से ही फुटबॉल के दीवाने थे सरप्रीत सिंह
सरप्रीत का जन्म और पालन-पोषण न्यूज़ीलैंड में हुआ, लेकिन उनके माता-पिता पंजाब के जलंधर से हैं। वह बताते हैं कि जब वह 10 साल के थे, तब उन्होंने वेलिंग्टन में न्यूज़ीलैंड बनाम बहरीन का मैच देखा था, जिससे टीम ने 2010 वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई किया था। उस अनुभव ने उन्हें प्रेरित किया और उन्होंने तभी सपना देखा था कि एक दिन वर्ल्ड कप खेलेंगे।
पंजाबी परिवार और फुटबॉल का जुनून
सरप्रीत एक पारंपरिक पंजाबी परिवार से आते हैं, जहां क्रिकेट और हॉकी ज्यादा लोकप्रिय हैं। उनके माता-पिता एक किराने की दुकान चलाते थे। बचपन में वह बैकयार्ड क्रिकेट, बास्केटबॉल और रग्बी खेलते थे, लेकिन फुटबॉल में उन्हें सबसे ज्यादा मजा आता था। उनके बड़े भाई और अंकल भी सामाजिक तौर पर फुटबॉल खेलते थे, जिससे उन्हें प्रेरणा मिली।
माँ का समर्थन और क्लब फुटबॉल की शुरुआत
सरप्रीत की माँ सरबजीत उन्हें सात साल की उम्र में क्लब में लेकर गईं और वहीं से उनका सफर शुरू हुआ। वह बताते हैं कि कई पंजाबी माता-पिता पढ़ाई पर ज्यादा जोर देते हैं, लेकिन उनकी माँ ने उन्हें फुटबॉल में आगे बढ़ने का मौका दिया, जो उनके दोनों बड़े भाई-बहनों को नहीं मिला। उन्होंने विंटन रूफर की फुटबॉल अकादमी से शुरुआत की और बाद में वेलिंग्टन फीनिक्स अकादमी से जुड़ गए।
शुरुआती संकेत और यूरोप की ओर कदम
11-12 साल की उम्र से ही सरप्रीत को अहसास हो गया था कि उनमें दूसरों से बेहतर खेलने की क्षमता है। उन्होंने अकसर अपने उम्र से ऊपर की टीमों में खेला। 15-16 की उम्र में वह राष्ट्रीय अंडर-एज टीमों का हिस्सा बनने लगे। U-17 ओशियाना कप और U-20 वर्ल्ड कप में उन्होंने बेहतरीन प्रदर्शन किया। इसके बाद 2019 में जर्मन क्लब बायर्न म्यूनिख ने उन्हें साइन किया और वह ऐसा करने वाले पहले कीवी खिलाड़ी बने।
बायर्न म्यूनिख से मिली पहचान

हालांकि उन्होंने बायर्न की मुख्य टीम के लिए केवल दो मैच खेले, लेकिन पहले टीम के साथ ट्रेनिंग करना उनके लिए बहुत बड़ा अनुभव था। वह बताते हैं कि यह पल उनके लिए अविश्वसनीय था क्योंकि न्यूज़ीलैंड से सीधे बायर्न पहुंचना बहुत बड़ी बात है। इस अनुभव ने उन्हें प्रोफेशनल फुटबॉलर की जिंदगी की गंभीरता सिखाई।
यूरोप में चुनौतियाँ और मानसिक संघर्ष
सरप्रीत मानते हैं कि यूरोप में विदेशी खिलाड़ी होने के कारण ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। अगर कोई जर्मन खिलाड़ी और विदेशी खिलाड़ी एक स्तर पर हैं तो प्राथमिकता जर्मन को दी जाती है। साथ ही यूरोपीय पासपोर्ट नहीं होने के कारण उनके लिए अवसर सीमित थे। 2020 में एक गंभीर चोट (Osteitis Pubis) ने उनके करियर को रोक दिया। वह वेर्डर ब्रेमेन से साइनिंग के करीब थे, लेकिन चोट के कारण सब रुक गया।
चोट के बाद संघर्ष और वापसी
इस चोट ने उनका करियर बुरी तरह प्रभावित किया। उन्होंने बुंडेसलीगा 2 की टीमों एफसी नूर्नबर्ग और एसएसवी जान रेजेन्सबर्ग में लोन पर खेला, लेकिन वो स्थायित्व नहीं मिल पाया। अब वह पुर्तगाल के सेकंड डिवीजन क्लब यूनियाओ डी लीरिया के लिए खेलते हैं। वह कहते हैं कि इस दौर में मानसिक तौर पर अकेलापन सबसे बड़ी चुनौती थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलता
2018 से न्यूज़ीलैंड के लिए खेल रहे सरप्रीत ने भारत में भी इंटरकॉन्टिनेंटल कप में हिस्सा लिया था। उन्होंने केन्या के खिलाफ पहला अंतरराष्ट्रीय गोल किया और भारत के खिलाफ दो असिस्ट दिए। वह बताते हैं कि एक सिंह होकर भारत के खिलाफ खेलना अजीब लेकिन खास अनुभव था। उन्हें वहां के फैन्स का अच्छा रिस्पॉन्स मिला और उन्होंने गर्व महसूस किया।
भारतीय फुटबॉल को लेकर राय
सरप्रीत मानते हैं कि अगर भारतीय मूल के खिलाड़ी भारत की राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनना चाहें तो यह विकल्प खुला होना चाहिए। दूसरे देशों में भी दोहरी नागरिकता वाले खिलाड़ियों को ऐसा मौका मिलता है। इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती मिल सकती है।
वर्ल्ड कप 2026 को लेकर उम्मीदें
न्यूज़ीलैंड पहले भी दो बार वर्ल्ड कप खेल चुका है, लेकिन कभी भी ग्रुप स्टेज से बाहर नहीं निकल पाया। सरप्रीत मानते हैं कि इस बार उनकी टीम पहले से ज्यादा मजबूत है क्योंकि अब टीम में कई खिलाड़ी यूरोप में खेलते हैं और पहले की तरह पूरी तरह शौकिया नहीं हैं। वह मानते हैं कि इस बार ग्रुप स्टेज पार करना मुमकिन है।
भारतीय फैंस से मिल रहा है प्यार
सरप्रीत बताते हैं कि जैसे ही न्यूज़ीलैंड की टीम वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई हुई, उनके सोशल मीडिया पर भारतीय फैन्स के मैसेजेस की बाढ़ आ गई। वह कहते हैं कि यह सब उन्हें और मेहनत करने की प्रेरणा देता है क्योंकि वह जानते हैं कि बहुत कम भारतीय मूल के खिलाड़ी वर्ल्ड कप खेले हैं। वह चाहते हैं कि उनका सफर दूसरे युवाओं को भी प्रेरित करे।
सरप्रीत मानते हैं कि फुटबॉल में ज्यादा दूर की योजना बनाना ठीक नहीं क्योंकि हालात जल्दी बदल जाते हैं। अभी उनका लक्ष्य नियमित रूप से मैच खेलना और फिट रहना है, ताकि वह फीफा वर्ल्ड कप के लिए टीम में चुने जा सकें।
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