क्रिकेट आज भले ही एक हाईटेक और परफेक्ट स्पोर्ट्स बन चुका हो, लेकिन इसकी शुरुआत काफी साधारण रही थी। अगर बात करें विकेट की, तो आज तीन स्टंप्स का जो कॉम्बिनेशन हम देखते हैं, वह पहले ऐसा नहीं था। शुरुआत में क्रिकेट में सिर्फ दो स्टंप्स का इस्तेमाल होता था और वह भी बिना किसी स्टैंडर्ड साइज़ के।
दो स्टंप्स के साथ होता था क्रिकेट

दो स्टंप्स के बीच जो गैप होता था, वह इतना चौड़ा था कि कई बार गेंद उस बीच से निकल जाती थी लेकिन बेल नहीं गिरती थी। यानी, गेंदबाज ने कितनी भी अच्छी गेंद डाली हो, अगर वह दोनों स्टंप्स के बीच से निकल जाए और बेल न गिरे, तो बल्लेबाज़ आउट नहीं माना जाता था। यह चीज़ खिलाड़ियों और दर्शकों दोनों के लिए निराशाजनक थी।
1775 की घटना जिसने नियम बदल दिए
साल 1775 में लंदन के आर्टिलरी ग्राउंड में हैम्पशायर और इंग्लैंड के बीच खेले गए एक मैच में यह समस्या चरम पर पहुंच गई। दिग्गज गेंदबाज एडवर्ड ‘लम्पी’ स्टीवंस ने लगातार तीन गेंदें ऐसी फेंकीं जो दो स्टंप्स के बीच से निकलीं लेकिन बेल नहीं गिरी। यह घटना इतनी चर्चित हुई कि क्रिकेट जगत को नियमों में बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ा।
कब हुई तीसरे स्टंप की एंट्री?
साल 1775 में, क्रिकेट अधिकारियों ने मिलकर एक बड़ा फैसला लिया। तीसरे स्टंप को विकेट में शामिल किया गया और इसे दो पुराने स्टंप्स के बीच लगाया गया ताकि गेंद अब सीधे बीच से न निकल पाए। इस बदलाव ने क्रिकेट में एक नई शुरुआत दी और जल्द ही यह फॉर्मेट पूरे इंग्लैंड में अपनाया गया।
स्टंप्स की ऊंचाई और चौड़ाई में बदलाव
- 1775 के बाद केवल स्टंप्स की संख्या ही नहीं बदली, बल्कि उनके माप में भी कई बदलाव किए गए।
- 1780 में स्टंप्स की ऊंचाई को 22 इंच और बेल की लंबाई को 6 इंच तय किया गया।
- 1835 में स्टंप्स की ऊंचाई को 27 इंच कर दिया गया और बाहरी दोनों स्टंप्स के बीच की चौड़ाई 8 इंच तय हुई।
- 1931 के बाद, आज जो नियम मान्य हैं, उनके अनुसार हर स्टंप की ऊंचाई 28 इंच और तीनों स्टंप्स की कुल चौड़ाई 9 इंच होती है।
आज के स्टंप्स में टेक्नोलॉजी की ताकत
आज के दौर में स्टंप्स सिर्फ लकड़ी के टुकड़े नहीं हैं। क्रिकेट में टेक्नोलॉजी के आने के बाद LED स्टंप्स और ज़िंग बेल्स का चलन हो गया है जो आउट होने पर चमकते हैं। साथ ही स्टंप माइक्रोफोन से ‘स्निक’ सुनकर थर्ड अंपायर DRS का फैसला कर पाते हैं। इसके अलावा कुछ मैचों में स्मार्ट स्टंप्स का भी इस्तेमाल होता है जो रन आउट या एनालिटिक्स में मदद करते हैं।
स्टंप्स का प्रतीकात्मक महत्व
क्रिकेट की भाषा में स्टंप्स अब एक प्रतीक बन चुके हैं। “स्टंप्स उड़ा दिए” बोलना आज भी किसी गेंदबाज़ की श्रेष्ठता दिखाने के लिए कहा जाता है। टेस्ट क्रिकेट में दिन के खेल के अंत को “स्टंप्स” कहा जाता है। वहीं बल्लेबाज को आउट करने के कई तरीकों में स्टंप्स अहम भूमिका निभाते हैं, जैसे बोल्ड, रन आउट, स्टंपिंग और हिट विकेट।
दो से तीन स्टंप्स तक का ऐतिहासिक सफर
तो साफ है कि क्रिकेट की शुरुआत में सिर्फ दो स्टंप्स होते थे, लेकिन 1775 की एक ऐतिहासिक घटना ने तीसरे स्टंप की जरूरत को सामने लाया। इसके बाद जो बदलाव हुए, उन्होंने क्रिकेट को और बेहतर, निष्पक्ष और रोमांचक बना दिया। आज का क्रिकेट जितना आधुनिक है, उतना ही यह इतिहास से भी जुड़ा हुआ है और स्टंप्स इसका बेहतरीन उदाहरण हैं।
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