हिंदुस्तान में जब भी हॉकी का नाम लिया जाता है तब मेजर ध्यानचंद की याद आ ही जाती है। मेजर ध्यानचंद ही हैं जिन्होंने हॉकी के माध्यम से पूरे विश्व में भारत को एक अलग पहचान दी। मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ के नाम से भी जाना जाता है। दूसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने वाले नरेंद्र मोदी ने खेल जगत में दिए जाने वाले सबसे मुख्य और प्रतिष्ठित अवॉर्ड राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड रख दिया था। पीएम मोदी ने इस फैसले का ऐलान करते हुए कहा था कि ये अवॉर्ड हमारे देश की जनता की भावनाओं का सम्मान करेगा।
मेजर ध्यानचंद का प्रारंभिक जीवन
अपने अगल अंदाज की हॉकी खेलने से भारतवासियों का दिल जीतने वाले मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था। इसके बाद 16 साल की उम्र में वो सिपाही में भर्ती हो गए थे और यही वो वक्त था जब देश के लिए एक शानदार हॉकी का खिलाड़ी तैयार हो रहा था। बताया जाता है कि रेजीमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी ने ही ध्याचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रोतसाहित किया था। इसके बाद मेजर ध्यानचंद ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और देखते ही देखते वो भारत के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बन गए।
मेजर ध्याचंद का हॉकी में योगदान
भारतीय टीम ने पहली बार एम्सटर्डम ओलंपिक में हिस्सा लिया था और इस ओलंपक में भारतीय टीम मेजर ध्यानचंद के योगदान को कभी भुला नहीं सकती। एम्सटर्डम ओलंपिक के फाइनल में मेजर ध्यानचंद ने हॉलैंड के खिलाफ अंतिम तीन में दो गोल करके भारत को ऐतिहासिक गोल्ड मेडल देकर इतिहास रच दिया था। ठीक ऐसे ही लॉस एंजल्स ओलंपिक में भारत ने अमेरिका को 24-1 के भारी अतंर से हराया था। साल 1936 में मेजर ध्यानचंद ने भारतीय टीम की कमान संभाली थी। अपने शानदार खेल के दम पर इस बार भी भारतीय टीम ने जीत दर्ज की और भारतीय टीम ने हॉकी में मेडल की हेट्रिक लगा दी।
अपने कमाल के खेल कौशल के द्वारा विश्व स्तर पर भारत का नाम रोशन करने वाले मेजर ध्यानचंद को साल 1956 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। जानकारी के लिए बता दें कि मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन पर खेल दिवस मनाया जाता है।
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