Milkha Singh Biography: ‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह का जीवन परिचय

मिल्खा सिंह के जीवन पर बंटवारे का असर पड़ा। ये वो ही बंटवारा था जिसने मिल्खा सिंह के परिवार को उनसे दूर कर दिया। बताया जाता है कि मिल्खा सिंह के सामने उनके परिवार का कत्ल कर दिया गया था। जिसके बाद वो अपने भाई मलखान सिंह के साथ भारत की राजधानी दिल्ली में आ गए।

‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से मशहूर व भारत के पहले गोल्ड मेडलिस्ट के रूप में मिल्खा सिंह को पूरी दुनिया जानती है। मिल्खा सिंह का जन्म 20 November 1929 को पाकिस्तान के गोविंदपुरा में हुआ था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वो राठोर परिवार से ताल्लुख रखते थे। उनके पिता का नाम टेक सिंह था जो कि एक किसान थे और इसी से अपने परीवार का जीवन यापन करते थे। मिल्खा सिंह की माताजी का नाम नसीब कौर था। मिल्खा सिंह जब थोड़ा बड़े हो रहे थे तब बटवारे का दौर चल रहा था जो कि उस वक्त मौजूद किसी भी व्यक्ति के लिए परेशानी का सबब था।

बंटवारे के चलते भारत आए थे मिल्खा सिंह

मिल्खा सिंह के जीवन पर बंटवारे का असर पड़ा। ये वो ही बंटवारा था जिसने मिल्खा सिंह के परिवार को उनसे दूर कर दिया। बताया जाता है कि मिल्खा सिंह के सामने उनके परिवार का कत्ल कर दिया गया था। जिसके बाद वो अपने भाई मलखान सिंह के साथ भारत की राजधानी दिल्ली में आ गए। उनको अपने परिवार से दूर होना पड़ा, जिसका कि उम्र भर दुख रहा। उनकी जिंदगी में एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने डाकू बनने का मन बना लिया था।

Milkha Singh
Image Source: Social Media

सेना में शामिल होने के बाद मिली पहचान

भारत आने के बाद मिल्खा सिंह राजधानी दिल्ली में शरणार्थी शिविर में रहने लगे। इसके बाद वो यहां पर छोटो-मोटे काम करके अपना जीवन गुजारने लगे। बाद में एक दिन उनके भाई ने मिल्खा सिंह को भारतीय सेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। भाई को बात को ध्यान में रखते हुए मिल्खा सिंह ने तीन बार सेना में जाने के लिए प्रयास किया, लेकिन इसमें वो विफल रहे। फिर चौथे प्रयास के बाद मिल्खा सिंह ने साल 1951 में भारतीय सेना की विद्युत मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में नौकरी ले ली। हांलाकि बचपन से ही मिल्खा सिंह को दौड़ने में काफी रूची थी, लेकिन उनके इस कौशल को भारतीय सेना में ही सही दिशा मिली। उनकी कला को कोच हवलदार गुरुदेव सिंह ने पहचाना और इसके लिए मिल्खा सिंह को प्रेरित करने का श्रेय गुरुदेव को ही जाता है। इसके बाद जल्द ही मिल्खा सिंह ने भारतीय ट्रैक एंड फील्ड में अपनी अलग पहचान बनाई। इस दौरान उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भाग लेकर देश की झोली में पदक डालने का काम किया।

साल 1960 में, मिल्खा सिंह को रोम ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। उन्होंने 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान हासिल किया। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, क्योंकि यह किसी भी भारतीय धावक द्वारा ओलंपिक में हासिल किया गया सबसे अच्छा प्रदर्शन था।

तीन ओलंपिक में किया भारत का प्रतिनिधित्व

साल 1964 मिल्खा सिंह को टोक्यो ओलंपिक के दौरान भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया। इस दौरान उन्होंने 400 मीटर दौड़ के फाइनल में जगह बना डाली। लेकिन दुर्भाभाग्य ये रहा कि उन्हें चोट लग गई और वो अपनी रेस पूरी नहीं कर पाए। इसके पहले उन्होंने मेलबर्न ओलंपिक और रोम ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था। मिल्खा सिंह ने अपने जीवन का पहला ओलंपिक साल 1956 में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न की धरती पर खेला था। इस वक्त तक उन्हें ट्रैकिंग फील्ड का खास अनुभव नहीं था।

Milkha Singh

मिल चुके हैं कई सम्मान

ये ही कारण था कि मेलबर्न ओलंपिक में मिल्खा सिंह कुछ खास नहीं कर पाए थे। 1960 का रोम ओलंपिक मिल्खा सिंह समेत सभी भारतीयों के लिए अहम साल रहा था। इस दौरान मिल्खा सिंह ने 400 मीटर के फाइनल में हिस्सा लिया और बेहद कम संसाधनों के बावजूद वो चौथे स्थान पर रहे। उन्होंने ये कारनामा 45.73 में किया। इस दौरान फ्लाइंग सिख मिल्का सिंह भले ही मेडल से चूक गए हो लेकिन उन्होंने ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसको करीब 40 साल तक कोई नहीं तोड़ा पाया। मिल्खा सिंह ने भारत का झंडा ट्रैकिंग एंड फील्ड के जरिए पूरे विश्व में लहराया था। जिसके लिए उन्हें भारत सरकार ने कई पुरुस्कारों से सम्मानित किया है। इसमें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण शामिल हैं।

मिल्खा सिंह की शादी

1960 में रोम ओलंपिक का आयोजन हुआ था और इसके ठीक दो साल के बाद मिल्खा सिंह शादी के बंधन में बंध गए। 1960 में उन्होंने निर्मल कौर के साथ शादी रचा ली। मिल्खा सिंह की धर्मपत्नी निर्माला कौर भारतीय महिला बॉलीबॉल टीम की कप्तान थी और ये भारत की पहली टीम भी थी। इन दोनों के तीन बच्चे हैं। जिनका नाम जीव मिल्खा सिंह, सोनिया सनवालका और मोना मिल्खा सिंह है। बता दें कि मिल्खा सिंह के बेटे जीव मिल्खा सिंह दुनिया भर में एक लोकप्रिय शीर्ष क्रम के गोल्फर हैं।

Milkha Singh and his Wife
Image Source: X (Twitter)

मिल्खा सिंह की उपलब्धियां 

  • 1960 रोम ओलंपिक के दौरान 400 मीटर रेस में चौथा स्थान
  • 1962 में एशियाई खेलों के दौरान 40 मीटर रेस में गोल्ड मेडल
  • 1962  में एशियाई खेलों के दौरान 4 x 400 मीटर रिले रेस में गोल्ड मेडल
  • 1966 एशियाई खेलों के दौरान 400 मीटर रेस में रजत पदक
  • 1966 एशियाई खेलों के दौरान 4 x 400 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड मेडल

मिल्खा सिंह का निधन

आज भी मिल्खा सिंह को देश समेत पूरी दुनिया में एक बेहतरीन एथलीटों में गिना जाता है। ये ही कारण था कि उनको ‘फ्लाइंग सिख’ जैसा उपनाम दिया गया है। वो अपनी कड़ी मेहतन और खुद पर कुछ भी कर गुजरने के लिए जाने जाते थे। कोरोना काल कई भारतीयों समेत इस एथलीट के लिए परेशानी का सबब बना। उस दौरान मिल्खा सिंह भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए और जिंदगी से जंग हार गए। आखिरकार मिल्खा सिंह ने 18 जून 2021 को 91 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मृत्यू वास्तव में भारत के लिए बहुत बड़ी छती थी।

मिल्खा सिंह के बारे में कुछ अनसुनी बातें 

  • बंटवारे के कारण मिल्खा सिंह को भारत की राजधानी दिल्ली में आना पड़ा। पाकिस्तान से दिल्ली आने के लिए वो ट्रेन की छत पर बैठ गए।
  • मिल्खा सिंह जैसे ही भारत पहुंचे तो वो अक्सर नौकरी की तलाश में निकल जाते थे। इस दौरान उन्होंने कभी-कभी रोटी की तलाश में जूते भी पॉलिश किए।
  • मिल्खा सिंह जब रबर के उद्दोग में गए तो वहां पर उन्हें एक महीने काम करने के लिए 15 रुपये दिए जाते थे।
  • मिल्खा सिंह रेस की खूब प्रैक्टिस किया करते थे और इस दौरान कई बार उनकी नाक से खून भी बहने लगता था।
  • मिल्खा सिंह ने अपनी आत्मकथा ‘द रेस ऑफ माई लाइफ’ भी प्रकाशित की है।
  • मिल्खा सिंह ने साल 1958 में इतिहास रचा। इस दौरान वह कार्डिफ में राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के पहले स्वर्ण पदक विजेता बने। उन्होंने अपनी इस सफलता का श्रेय अमेरिकी कोच डॉ. आर्थर डब्ल्यू. हॉवर्ड को दिया था।

ऐसे मिला ‘फ्लाइंग सिख’ नाम

बात है साल 1960 की जब माना जा रहा था कि उनके बिना इसी साल आयोजित होने वाली भारत-पाक प्रतियोगिता अधूरी मानी जाएगी। मिल्खा सिंह को पाकिस्तान के सबसे तेज धावक अब्दुल खालिद के प्रतिस्पर्धा करने के लिए आमंत्रित किया गया था। लेकिन इससे 13 साल पहले भारत-पाक के बंटवारे के चलते वो पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। इसके बाद उस वक्त के मौजूदा प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मिल्खा सिंह को रेस में हिस्सा लेने के लिए कहा और बाद में उन्होंने पाकिस्तान के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। फिर पाकिस्तान जाकर उन्हीं के देश के सबसे तेज धावक अब्दुल खालिद को रेस में हराया। रेस खत्म होने के बाद उस वक्त के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अयूब खान ने मिल्खा सिहं की तारीफ करते हुए कहा था कि, आज तुम दौड़े नहीं, उड़े थे। इसके बाद से मिल्खा सिंह का उपनाम ‘मिल्खा सिंह’ पड़ा और दुनिया उन्हें इसी नाम से जानने लगी।

मिल्खा सिंह भारत के वो पहले शख्स थें जिन्होंने भारत के आने वाले भविष्य को ओलंपिक में भारत लेने के लिए प्रेरणा दी और भारत के लिए गोल्ड मेडल लाने के लिए प्रोत्साहित किया। वो भारत के सबसे महान एथलीट में से एक थे। मिल्खा सिंह ने आजादी के बाद अपने दृढ़ संकल्प और अथक प्रयास के चलते दुनियाभर में भारत का नाम रोशन किया। उनकी जिंदगी पर बॉलीवुड में ‘भाग मिल्खा भाग’ नाम की एक फिल्म भी बन चुकी है। मिल्खा सिंह की जिंदगी के बारे में जानकर आज भी भारत के युवाओं को काफी प्रेरणा मिलती है।

ये भी पढ़ें: P. T. Usha के करियर की ये हैं महत्वपूर्ण उपलब्धियां

स्पोर्ट्स से जुड़ी अन्य खबरें जैसे, cricket news और  football news के लिए हमारी वेबसाइट hindi.sportsdigest.in पर log on

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More